Friday, March 2, 2012

ज़िन्दगी का सवाल..


ऑफिस में बैठा अपने लैपटॉप की स्क्रीन में झांकते हुए मैं बस यह सोच रहा था की क्या 15 साल पहले इस बात का अंदाजा था की ज़िन्दगी ऐसी होगी? आज भी याद करता हूँ वो पुराने दिन तो सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. भला बताईये, कितने ही लोग ऐसे होंगे जो ज़मीन पर नाचते हुए लट्टू को अपने हथेलियों पर उठाकर नचा सकते हैं. पतंगबाजी का कभी official इतिहास लिखा गया तो gurantee देता हूँ की किसी न किसी पन्ने पर नाम ज़रूर आएगा. और आज देखिये, AC cubicle में बैठा मैं Excel में conditional formatting कर रहा. Important Deliverable है. Client को आज ही चाहिए. चाहे भले ही उसको पूरा करने में आपके और घड़ी, दोनों के बारह क्यूँ न बजे.

उस वक़्त हर सोमवार को होने वाले टेस्ट से डर लगता था. पेपर में कोई सवाल छूट जाए तो अगले दो period तक कोहराम मचा रहता था. और अब देखिये, ज़िन्दगी एक सवाल बन चुकी है, पर कभी दो मिनट कोशिश नहीं करी जवाब ढूंढने की. खैर कोई बात नहीं. आइये SAS और Excel के सवालों के जवाब दें. आसपास के लोग आपकी बुद्धिमता की तारीफ़ करेंगे. आपकी Facebook की Wall पर तारीफों की पुल बांधेंगे. 15-20 likes और आप खुश. भूल जायेंगे की किसी सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश कर रहे थे आप.

खैर यह पोस्ट भी Facebook पर शेयर हो जाएगा. चंद बुद्धिजीवियों के likes आ जायेंगे. शाम की दारु पार्टी के लिए एक विषय मिल जाएगा discussion के लिए. कल hangover के बाद कुछ याद न रहेगा और  ज़िन्दगी का सवाल फिर से कहीं किसी कोने में खो जाएगा.

7 comments:

  1. jin sawalon ke jawab nahi unko poochne ka kya fayda... jo samajh aata hai aur jo karna aata hai, usi mein samay lagana chahiye.

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  2. काफी दिनों बाद कुछ अच्छा हिंदी में पढने को मिला :)

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  3. कोशिश तो की मैँने कि मैँ हरदम मुस्कुराता रहूँ ।।
    मगर ,
    कुछ लम्हेँ याद आते हैँ और आँखेँ भीग जाती है ।।

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  4. kaun mana kar raha hai? dhoondh lo jawab.. aksar aise jawab kaafi obvious hi hote hain.. staring rt in ur face, its just that one is too busy or too complacent to notice it!

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