Sunday, May 6, 2012

सत्यमेव जयते


आज सुबह सुबह जगने के बाद, जब Facebook पर login करा तो पाया की लोग तो आमिर खान के कहने पर सच में 9 बजे उठ गए. खैर मेरी सुबह तो 12 बजे हुई. नींद ज्यादा प्यारी है, आमिर खान नहीं.

हर कोई सत्यमेव जयते का नारा लगाए बैठा था. लगा की अन्ना हजारे वाले दिन वापस आ गए, जब मेरी Friend List में ही कुछ दो-ढाई सौ अन्ना थे. मैंने Show तो नहीं देखा, पर जितना पढ़ा और सुना उसके बारे में, इतना ही समझ में आया की देश और समाज को बदलने की बात करी जायेगी हर रविवार सुबह 11 बजे.

अच्छी बात है. लोग हर रविवार जल्दी उठेंगे. आमिर का शो देखेंगे. Facebook पर नारेबाजी करेंगे. शाम की चाय की चुस्कियों के साथ देश में चल रही हर कुप्रथा का ठीकरा किसी न किसी के सर पर फोड़ेंगे. हमारे जैसे बुद्धिजीवी जो चाय नहीं पीते, वो रविवार की शाम किसी pub में बैठ कर व्हिस्की के 1-2 पेग और अंग्रेजी गानों के बीच यही कहते हुए पाए जायेंगे की इस देश का कुछ नहीं हो सकता, "We need a bloody revolution ". घर की चाय और pub की व्हिस्की में बस एक ही फर्क होगा, आप बिना संकोच के हर किसी को माँ बहन की गालियाँ दे रहे होंगे.

काश एक शो देखने से गुडगाँव दिल्ली में हो रहे बलात्कार, हरयाणा के गाँव में धड़ल्ले से हो रहे "Honor Killing ", दक्षिण भारत में हो रहे धर्म परिवर्तन , भ्रूण-हत्या इत्यादि रुक जाते. यह तो बस कुछ ही मसले हैं, गिनाने बैठूँगा तो सोमवार आ जाएगा. आप और मैं, फिर से सज धज के काम पर चले जायेंगे. दिन भर कोल्हू के बैल की तरह पिसेंगे, और शाम को वापस आकर Times of India पर एक और बलात्कार के बारे में पढेंगे, निकम्मी पुलिस को भर भर के गालियाँ देंगे. बाकी हफ्ता Excel sheets रंगने,Manager से झगड़ने और Sunny Leone के बारे में चटपटी खबरें पढने में निकल जाएगा. फिर एक और रविवार आएगा, फिर यही कार्यक्रम दोहराया जाएगा. 

जागिये. मानसिकता बदलने की कोशिश करिए. मैं तो अब भी हर रविवार 12 बजे ही उठूँगा, क्यूंकि मुझमें वो हिम्मत नहीं की बदलाव लाऊँ. पर हाँ, मैं उन लोगों में से भी नहीं, जो Facebook  पर बदलाव की बातें करते हैं. क्या पता, आप अगर अपनी नींद से जाग जाओ, तो मैं भी आपके संग हो लूँ इस बदलाव को लाने के लिए.

थोडा सोचिये. आराम से सोचिये.
जय हिंद!

Wednesday, April 11, 2012

कड़वा सच ..


अगर किसी Project Manager से कहा जाए की किस महीने से वह सबसे ज्यादा नफरत करता है, तो सौ फीसदी शर्त लगा लीजिये उसका जवाब अप्रैल होगा. और भला हो भी क्यूँ न? Management की चाह रखने वालों के परिणाम जो आते हैं इस महीने. न जाने एक ही Resignation Letter पता नहीं कितनी बार Copy Paste होकर पता नहीं कितने दफ्तरों में इस्तेमाल होता होगा. अरे इंजिनियर हैं साहब, तो आलसी तो होंगे ही. कौन साला दिमाग लगाए.

खैर CAT का रिजल्ट आ गया. जान पहचान के काफी लोगों ने बिल्ली ने गले में घंटी बाँध दी. बाँधी तो बाँधी, अपने Project Manager  को कुत्ता बना दिया. Resignations , Staffing , deadlines, ..काफी अच्छा तरीका है खराब reviews का बदला निकालने का.

जिन लोगों ने मचाया, उन्हें दिल से बधाई. आप लोगों की ख़ुशी का अंदाजा शायद इस वक़्त आपके Facebook Status पर Likes की गिनती से पता चल जाता है. खैर यह वैसे साल के वो एक-दो हफ्ते हैं जब मैं आप लोगों से प्रेरित होकर हर दिन Flipkart पर अरुण शर्मा की किताबें ढूंढ़ता हूँ. "यार, इस बार तो पक्का CAT लिखेंगे, बहुत हो गयी गुलामी". सितम्बर आते ही लगता है, अमा हटाओ यह सब.  1600 रुपये में तो Teachers का पूरा खम्बा आ जाता है. पढ़े लिखें तो हैं नहीं, फ़ालतू में दिन खराब होगा. और सुट्टे की धुंए में यह प्लान भी उड़ा दिया जाता है.

खैर इस बार कसम खाता हूँ की इस साल पक्का कोई न कोई Exam तो ज़रूर दूंगा. सही बता रहा हूँ, आप भी कुछ करिए. वरना घर वाले शादी के पीछे पड़ जायेंगे. बुढ़ापा बढ़ता जा रहा है और बहुत कम ही ऐसे हैं जिनकी त्वचा से उनकी उम्र का पता नहीं चलता. आइये सूट-बूट में फोटो खिचायें, अपनी शादी में नहीं, किसी कॉलेज की कैंटीन में. जवानी के दिन हैं, शादी कर के बर्बाद न करें. :)

Friday, March 2, 2012

ज़िन्दगी का सवाल..


ऑफिस में बैठा अपने लैपटॉप की स्क्रीन में झांकते हुए मैं बस यह सोच रहा था की क्या 15 साल पहले इस बात का अंदाजा था की ज़िन्दगी ऐसी होगी? आज भी याद करता हूँ वो पुराने दिन तो सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. भला बताईये, कितने ही लोग ऐसे होंगे जो ज़मीन पर नाचते हुए लट्टू को अपने हथेलियों पर उठाकर नचा सकते हैं. पतंगबाजी का कभी official इतिहास लिखा गया तो gurantee देता हूँ की किसी न किसी पन्ने पर नाम ज़रूर आएगा. और आज देखिये, AC cubicle में बैठा मैं Excel में conditional formatting कर रहा. Important Deliverable है. Client को आज ही चाहिए. चाहे भले ही उसको पूरा करने में आपके और घड़ी, दोनों के बारह क्यूँ न बजे.

उस वक़्त हर सोमवार को होने वाले टेस्ट से डर लगता था. पेपर में कोई सवाल छूट जाए तो अगले दो period तक कोहराम मचा रहता था. और अब देखिये, ज़िन्दगी एक सवाल बन चुकी है, पर कभी दो मिनट कोशिश नहीं करी जवाब ढूंढने की. खैर कोई बात नहीं. आइये SAS और Excel के सवालों के जवाब दें. आसपास के लोग आपकी बुद्धिमता की तारीफ़ करेंगे. आपकी Facebook की Wall पर तारीफों की पुल बांधेंगे. 15-20 likes और आप खुश. भूल जायेंगे की किसी सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश कर रहे थे आप.

खैर यह पोस्ट भी Facebook पर शेयर हो जाएगा. चंद बुद्धिजीवियों के likes आ जायेंगे. शाम की दारु पार्टी के लिए एक विषय मिल जाएगा discussion के लिए. कल hangover के बाद कुछ याद न रहेगा और  ज़िन्दगी का सवाल फिर से कहीं किसी कोने में खो जाएगा.