आज सुबह सुबह जगने के बाद, जब Facebook पर login करा तो पाया की लोग तो आमिर खान के कहने पर सच में 9 बजे उठ गए. खैर मेरी सुबह तो 12 बजे हुई. नींद ज्यादा प्यारी है, आमिर खान नहीं.
हर कोई सत्यमेव जयते का नारा लगाए बैठा था. लगा की अन्ना हजारे वाले दिन वापस आ गए, जब मेरी Friend List में ही कुछ दो-ढाई सौ अन्ना थे. मैंने Show तो नहीं देखा, पर जितना पढ़ा और सुना उसके बारे में, इतना ही समझ में आया की देश और समाज को बदलने की बात करी जायेगी हर रविवार सुबह 11 बजे.
अच्छी बात है. लोग हर रविवार जल्दी उठेंगे. आमिर का शो देखेंगे. Facebook पर नारेबाजी करेंगे. शाम की चाय की चुस्कियों के साथ देश में चल रही हर कुप्रथा का ठीकरा किसी न किसी के सर पर फोड़ेंगे. हमारे जैसे बुद्धिजीवी जो चाय नहीं पीते, वो रविवार की शाम किसी pub में बैठ कर व्हिस्की के 1-2 पेग और अंग्रेजी गानों के बीच यही कहते हुए पाए जायेंगे की इस देश का कुछ नहीं हो सकता, "We need a bloody revolution ". घर की चाय और pub की व्हिस्की में बस एक ही फर्क होगा, आप बिना संकोच के हर किसी को माँ बहन की गालियाँ दे रहे होंगे.
काश एक शो देखने से गुडगाँव दिल्ली में हो रहे बलात्कार, हरयाणा के गाँव में धड़ल्ले से हो रहे "Honor Killing ", दक्षिण भारत में हो रहे धर्म परिवर्तन , भ्रूण-हत्या इत्यादि रुक जाते. यह तो बस कुछ ही मसले हैं, गिनाने बैठूँगा तो सोमवार आ जाएगा. आप और मैं, फिर से सज धज के काम पर चले जायेंगे. दिन भर कोल्हू के बैल की तरह पिसेंगे, और शाम को वापस आकर Times of India पर एक और बलात्कार के बारे में पढेंगे, निकम्मी पुलिस को भर भर के गालियाँ देंगे. बाकी हफ्ता Excel sheets रंगने,Manager से झगड़ने और Sunny Leone के बारे में चटपटी खबरें पढने में निकल जाएगा. फिर एक और रविवार आएगा, फिर यही कार्यक्रम दोहराया जाएगा.
जागिये. मानसिकता बदलने की कोशिश करिए. मैं तो अब भी हर रविवार 12 बजे ही उठूँगा, क्यूंकि मुझमें वो हिम्मत नहीं की बदलाव लाऊँ. पर हाँ, मैं उन लोगों में से भी नहीं, जो Facebook पर बदलाव की बातें करते हैं. क्या पता, आप अगर अपनी नींद से जाग जाओ, तो मैं भी आपके संग हो लूँ इस बदलाव को लाने के लिए.
थोडा सोचिये. आराम से सोचिये.
जय हिंद!